UPSSSC प्राचीन भारत का इतिहास ancient history of india

प्राचीन भारत का इतिहास ancient history of india

“इतिहास भूत/अतीत को समझाने का एक महत्वपूर्ण साधन है. किसी भी देश/समाज के इतिहास के अध्ययन से हमें उस देश या समाज के अतीत को जान सकते हैं और अतीत का आशय उस समाज या राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति होता है. और संसार के प्रत्येक देश अथवा समाज की उसकी सभ्यता तथा संस्कृति से होती है.” upsc samany gyan

प्राचीन भारत के इतिहास से हम यह पते हैं कि मानव समाज ने हमारे देश में प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का विकास कब, कैसे, और कहाँ किया.upsssc ancient history of india in hindi

इतिहास का अध्ययन करने वाले इतिहासकार कहलाते हैं| इतिहासकार एक वैज्ञानिक की तरह उपलब्ध स्रोतों का गहन अध्ययन करके पुराने अतीत का चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं| prachin bharat ka itihas

इतिहासकारों ने प्राचीन भारतीय इतिहास को तीन भागों में विभक्त किया है | जो निम्नलिखित हैं-

 

प्रागैतिहासिक काल मानव की उत्पत्ति से 3000 ई.पू. तक.

आद्य एतिहासिक काल 3000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक.

एतिहासिक काल 600 ई.पू. से अब तक.

प्रागैतिहासिक काल मानव की उत्पत्ति से 3000 ई.पू. तक- प्राचीन भारत का वहा काल जिसका कोई लिखित साधन उपलब्ध नहीं है अर्थात् इस काल में मानव ने लिखना, पढ़ना नहीं सिखा था| bharat ka itihas hindi me

आद्य एतिहासिक काल 3000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक- इस काल में मानव ने लिखना सिख लिया था परन्तु आज तक इतिहासकार पढ़ नहीं पाए. इस काल का इतिहास लिखते समय साहित्यिक और पुरातात्विक साधनों पर निर्भर रहना पढ़ता है.

एतिहासिक काल 600 ई.पू. से अब तक- इस काल के मानव ने लिखना पढ़ना बहुत अच्छा सीख लिया था, और मनुष्य बहुत सभ्य हो गया था. इस काल के इतिहास को लिखते समय साहित्यिक, पुरातात्विक, एवं, विदेशी यात्रियों के विवरण आदि की सहायता ली गयी है | भारतीय इतिहास जानने के साधनों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है. (1) पुरातात्विक स्रोत (2) साहित्यिक स्रोत (3) विदेशी रचनाकारों और यात्रियों के विवरण.

  • पुरातात्विक स्रोत-: पुरातात्विक स्रोत प्राचीन भारत को जानने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है इसके अंतर्गत अभिलेख, सिक्के, प्राचीन स्मारक, मूर्तियाँ, एवं चित्रकला आदि आते हैं. पुरातात्विक स्रोतों का अध्ययन करने वाला पुरातत्वविद कहलाता है. नोट- पाण्डुलिपि पुराने समय में हाथ से लिखी पुस्तकें होती है जो सामान्यत: ताड़पत्र अथवा हिमालयी क्षेत्र में पैदा होने वाले भूर्ज नमक पेड़ की छाल से बने भोज-पत्र पर लिखी होती थी. prachin bharat ka itihas ncert

अभिलेख -: अभलेखों के अध्ययन को पुरालेखशास्त्र(एपिग्राफी) कहते हैं अभिलेख कई प्रकार के होते हैं जैसे- मुहर, स्तूपों, प्रस्तर स्तंभों, चट्टानों, ताम्रपत्रों, प्राचीन मूर्तियों, मंदिरों की दीवारों पर लिखे अभिलेख. इस अभिलेखों की भाषा प्राकृत, पालि, संस्कृत और अन्य भाषाएँ. कुछ अभिलेख द्विभाषीय भी प्राप्त हुए हैं.

सबसे प्राचीन अभिलेख हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त मुहरों पर मिले हैं. जिनका काल 2500 ई. पू. है हड़प्पा सभ्यता के अभिलेखों को आज तक पढ़ा नहीं जा सका है. samany gyan hindi me

1837 ई. में जेम्स प्रिन्सेप ने अशोक के अभिलेखों पढ़ने में सफलता प्राप्त की.

शक शासक रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख संस्कृत भाषा का प्रथम अभिलेख है.

भारत से बाहर सर्वाधिक अभिलेख मध्य एशिया के बोगजकोई से मिले हैं. जिनमे इंद्र, मित्र, वरुण, तथा नासत्य आदि वैदिक देवताओ का उल्लेख प्राप्त होता है. prachin kaal ka itihas

ईरान से प्राप्त नक्श-ए-रुस्तम अभिलेख से ज्ञात होता है की भारत के ईरान से भी सम्बन्ध थे.

सिक्के-: सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र कहा जाता है. प्राचीन सिक्के सोने, चाँदी, ताँबा, पोटीन, सीसा, जस्ता एवं कांसा आदि से निर्मित होते थे जिन पर विभिन्न प्रकार के चिन्ह अंकित होते थे, इन सिक्को पर कोई लेख नहीं है इसलिए ऐसे सिक्को को आहत सिक्के या पंचमार्क कहते हैं. upsssc general knowledge

हिन्द यवनों ने भारत में सिक्का निर्माण की “ डाई विधि ” का प्रचालन किया.

सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के/मुद्राएं कुषाणों ने जारी की. तथा सबसे ज्यादा सोने के सिक्के/मुद्राओ को गुप्त शासकों ने जारी किया. aaddy aitihasik kaal

सातवाहनों ने सीसे की मुद्राओं को चलाया.

अन्य साधन-: अभिलेखों के अलावा स्मारकों, मंदिरों, मूर्तियों, मृद्भांड, चित्रकला आदि के आधार पर भी प्राचीन भारत के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है- स्मारकों को दो भागों में बांटा जा सकता है (1) देशी (2) विदेशी.- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, नालंदा, हस्तिनापुर आदि देशी स्मारक की श्रेणी में आते हैं तथा कम्बोडिया, अंकोरवाट बोरोबुदुर मंदिर अदि विदेशी स्मारक की श्रेणी में आते हैं. मृद्भांडो से भी भारत की कलात्मक प्रगति की जानकारी मिलती है.

साहित्यिक स्रोत-: प्राचीन भारतीय साहित्य को दो वर्गों में विभाजित किया गया है- (1) धार्मिक साहित्य (2) धर्मेत्तर साहित्य.

धार्मिक साहित्य- धार्मिक साहित्य के अंतर्गत ब्राह्मण ग्रंथ आते हैं- जैसे- वेद, पुराण, उपनिषद्, अरण्यक, महाभारत, वेदांग, रामायण इत्यादि. ये सब ग्रन्थ प्राचीन भारत धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समाज का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हैं.

भारत के चार प्राचीनतम ग्रन्थ वेद हैं-

ऋग्वेद- ऋग्वेद में मुख्यतः देवी-देवताओं की स्तुति की गयी है. ऋग्वेद एक पद्यात्मक रचना है.

यजुर्वेद- यजुर्वेद को यज्ञ विधान का ग्रन्थ माना जाता हैं इसमें यज्ञ के सभी नियम बताये गए हैं और यहाँ ग्रन्थ भी तत्कालीन समाज की स्थिति को प्रकट करता है.

सामवेद- सामवेद में यज्ञ के अवसर पर उच्चारित किये जाने वाले मन्त्रों का वर्णन करता हैं.

अथर्ववेद – इसमें विभिन्न जादू-टोने, तंत्र-मन्त्र, औषधि प्रयोग, रोग-उपचार के बारे में बताया गया है.

वेदांग- वेदों की पुनर्व्याख्या इन वेदांगों में की गयी है. वेदांगो की संख्या 6 है- शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छंद और ज्योतिष आदि.

उपनिषद- ये वेदों के अंतिम भाग माने जा सकते हैं इनमे धर्म, दर्शन और अध्यात्म के गूढ़ और अलौकिक रहस्यों का उल्लेख किया गया है. उपनिषद वेदों के अंतिम भाग होने के कारण वेदांत के नाम से भी जाने जाते हैं. इनकी संख्या 108 है.

सूत्र ग्रन्थ- सूत्रों में ऋषियों ने मनुष्यों के विभिन्न धार्मिक, अध्यात्मिक, सामाजिक कर्तव्यों का वर्णन किया है सूत्रों की संख्या केवल 3 है- गृह सूत्र, धर्म सूत्र, श्रोत सूत्र इत्यादि.

स्मृतियां- स्मृतियों का उद्भव सूत्रों की रचना के बाद हुआ है अत: इन्हें धर्मशास्त्र भी कहा जाता है. इनमे मनुष्य के जीवन पर्यन्त कर्तव्यों और कार्यकलापों का जिक्र किया गया हैं. मनु स्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति नारद स्मृति, अंगिरा स्मृति, पराशर स्मृति, कात्यायन स्मृति आदि.

पुराण- प्राचीन भारत की प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओ का उल्लेख पुराणों में उपलब्ध होता हैं विष्णु पुराण का सम्बन्ध मौर्य वंश से, वायु पुराण का सम्बन्ध गुप्त वंश से है तथा मत्स्यपुराण  का सम्बन्ध शुंग वंश और सातवाहन वंश से है.

बौद्ध साहित्य- प्राचीन भारत की सामाजिक स्थिति को समझाने के लिए बौद्ध साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका है. बौद्ध साहित्य को 3 भागों में विभाजित किया गया है- जातक, पिटक, निकाय आदि.

त्रिपिटक बौद्ध सहित्य का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है तथा त्रिपिटक की रचना गौतम बुद्ध के निर्वाण के पश्चात् हुई थी. वस्तुतः त्रिपिटक तीन ग्रंथों का संयुक्त नाम है जो निम्नलिखित हैं- सुत्तपिटक, विनय पिटक, और अभिधम्मपिटक आदि. इनकी भाषा ‘पालि’ है. इनके अतिरिक्त अन्य प्रमुख बौद्ध ग्रन्थ हैं- मिलिंदपन्हो, दीपवंश, अंगुतरनिकाय, महावंश.

महावस्तु, दिव्यावदान, ललितविस्तार, सारिपुत्र प्रकरण, सौन्दरानंद, बुद्धचरित ये संस्कृत में लिखित बौद्ध ग्रन्थ हैं.

जैन साहित्य- भारतीय समाज का जैन साहित्यिक ग्रन्थ भी भव्य चित्र प्रस्तुत करते हैं प्राचीन जैन ग्रन्थ ‘पर्व’ कहलाते हैं. जैन ग्रंथों में भगवन महावीर के सिद्धांत संकलित हैं जैन साहित्य की भाषा ‘प्राकृत’ है. आगमों को जैन साहित्य में उच्च स्थान प्राप्त है आगम को निम्न प्रकार से विभक्त किया गया है 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण और 6 छंद आदि.

आगम जैन ग्रंथो की रचना श्वेताम्बर संप्रदाय के आचार्यों ने की थी. जैन ग्रंथों का अंतिम रूप से संकलन गुजरात के वल्लभी नगर से किया गया.भद्रबाहु चरित, चूर्णी सूत्र, भगवती सूत्र आदि प्रमुख ग्रन्थ हैं.

धर्मेत्तर साहित्य- धर्मेत्तर साहित्य के अंतर्गत ऐतिहासिक, जीवनियों आदि का विशेष महत्वा है. धर्मेत्तर साहित्य में ‘सूत्र’ और ‘स्मृतियों’ का प्रमुख स्थान है. छटी शताब्दी ईशा पूर्व स्म्रतियों की रचना हुई पाणिनी द्वारा रचित अष्टाध्यायी नामक व्याकरण ग्रन्थ है. इधर चाणक्य के अर्थशास्त्र में चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन की जानकारी प्राप्त होती है. गैसों, धातुओं,फलों और सब्जियों के वैज्ञानिक और व्यावसायिक नाम

पतंजलि के महाभाष्य और कालिदास के मालविकाग्निमित्र नमक नाटकों से शुंग वंश की जानकारी प्राप्त होती है बाणभट्ट के हर्षचरित्र में सम्राट हर्षवर्धन के शासन की उपलब्धियों का ज्ञान मिलता है. पद्मगुप्त के नवसह्सांकचरित में परमार वंश और जयानक के पृथ्वीराज विजय में पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं.

विदेशी विवरण-

भारत में आने वाले अनेक विदेशियों ने तत्कालीन भारत की समाज, संस्कृति, शासन पद्धति का उल्लेख अपने ग्रंथो में किया हैं

अब विदेशी यात्रियोंन के विवरणों को हम तीन भाग में अध्ययन कर सकते हैं जिससे अभ्यर्थियों को पढ़ने में सुविधा होगी

यूनान और रोम के विदेशी यात्री/लेखक-

यूनान और रोम के विदेशी यात्री/लेखकों में सबसे पहले हेरोडोटस एवं टिसियस का नाम आता है. हेरोडोटस को “इतिहास का पिता” कहा जाता है, हेरोडोटस ने पांचवी शताब्दी ई.पू. में अपनी पुस्तक ‘हिस्टोरिका’ में भारत और फारस व्यापारिक राजनैतिक सम्बन्धो का विस्तृत वर्णन किया है.

टिसियस ये एक ईरानी राजवैद्य था इसने भारत और ईरान से सम्बन्धो का जिक्र किया है.

सिकन्दर के साथ भी अनेक यात्री भारत आये जिनमे निर्याकस, आनासिक्रेट्स, अरिस्टोबुलास आदि.

आनासिक्रेट्स ने सिकंदर की सम्पूर्ण जीवनी लिखी थी.

मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक इण्डिका में मौर्य साम्राज्य की भव्य चित्र प्रस्तुत किया है.

चीनी यात्रियों के विवरण-

चीनी यात्रियों में ह्वेनसांग, फाह्यान, और इत्सिंग प्रमुख स्थान रखते हैं. फाह्यान की रचना ए रिकॉर्ड ऑफ़ द बुद्धिस्ट कंट्रीज(फ़ो-क्यो-की) में चन्द्रगुप्त द्वितीय के साम्राज्य का विस्तृत उल्लेख मिलता हैं.

इसी प्रकार चाऊ-जू-कुआ ने भारत के चोल साम्राज्य पर प्रकाश डाला है.

तिब्बती लेखक लामा तारानाथ ने अपनी रचनाओं कंग्युर, और तंग्युर में भी भारतीय इतिहास का वरन मिलाता है.

अरब यात्रियों के के विवरण-

आठवीं शताब्दी में अरब के विभिन्न आक्रमणकारियों के साथ भारत भ्रमण के लिए आये लेखको ने भारत की विषय में लिखना शुरू किया नौवीं शताब्दी में सुलेमान नमक अरबी लेखक ने भारत के पाल एवं प्रतिहार शासको के विषय में लिखा इसी प्रकार अलममसूदी ने राष्ट्रकूट शासको के बारे में लिखा और अलबरूनी की महत्वपूर्ण पुस्तक ‘तहकीक ए हिन्द’ गुप्तोतर समाज की स्थिति का पता चलता है.

यहाँ प्रकाशित लेख विभिन्न स्रोतों से लिया गया है और NCERT पाठ्यक्रम का समावेश किया गया है इस लेख को अधिक से अधिक लोगो तक शेयर करें.

भारत का संवैधानिक विकास के प्रमुख चरण

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