अपवाह तंत्र किसे कहते हैं
भारत का अपवाह तंत्र: अपवाह तंत्र का आशय बहने वाली नदियों के उस जाल से है जो भूमि पर बहाने वाले जाल को एक निश्चित दिशा देता है, भारत जैसे विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल वाले देश में कई सौ छोटी-बड़ी नदियाँ बहती है जो भारत की विभिन्न दिशाओं में अपनी जल राशि को छोड़ती हैं. किसी भी भू-भाग का अपवाह तंत्र वहां की स्थलाकृति से ही निर्धारित होता है. गैसों, धातुओं,फलों और सब्जियों के वैज्ञानिक और व्यावसायिक नाम
भारत के अपवाह तंत्र का विकास-
भारत की नदियों के अपवाह तंत्र का वर्तमान रूप नदियों के विकास की की एक दीर्घकालीन भौगोलिक प्रक्रिया का परिणाम हैं.
भारत की नदियों के विकास आधार पर अपवाह तंत्र को मुख्य रूप से दो विस्तृत भागों में बाँट सकते हैं-
- हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
- प्रायद्वीपीय नदियाँ
हिमालय नदी तंत्र का उद्भव-
हिमालय के नदी तंत्र की उत्पत्ति के सम्बन्ध में भूगोलवेत्ताओं ने इंडोब्रह्म परिकल्पना के आधार पर व्याख्या दी है. इस इंडोब्रह्म परिकल्पना में तिब्बत के पठार में पूर्व दिशा से पश्चिम दिधा की ओर एक विशाल तिब्बती नदी बहती थी. ये तिब्बती नदी ही वर्तमान में सिन्धु नदी, संग्पो नदी और आक्सस नदियों से उद्भूत हुई थी. इसी तरह तिब्बती पठार में दूसरी नदी जो शिवालिक हिमालय (इंडोब्रह्म) की दक्षिण दिशा में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती हुई सिन्धु की खाड़ी( पंजाब के निकट) समुद्र में गिटती थी.
भारत के नदी अपवाह तंत्र की जानकारी
इसमें से तिब्बती नदी आधुनिक सतलज, सिन्धु, और ब्रह्मपुत्र नामक नदियों के रूप में सहायक नदियों के अपरदन से बाँट दी गयी और वर्त्तमान की छिंदविन और इरावदी, सतलज, सिन्धु तथा ब्रह्मपुत्र आदि निचली छोटी-छोटी नदी धाराओं द्वारा ग्रहण कर ली गयी. इसी तरह से शिवालिक नदी ( इंडोब्रह्म) भी प्लिस्टोसिन युग में दिल्ली कटक (पोतवर का पठार ) के उत्थान तथा माल्दा गैप( मेघालय और राजमहल की पहाड़ियों के मध्य) नदियों के अवक्षेपण के कारण तीन भागों में विभक्त हो गयी. और इस तिब्बती नदी का पश्चिमी हिस्सा सिन्धु नदी के रूप में बहने लगा. सिन्धु नदी अरब सागर में मिल जाति है.
मध्य भाग सिन्धु नदी के विपरीत दिशा में गंगा नदी रूप में बहने लगा. गंगा नदी भारत के बंगाल की खाड़ी में गिरती है. इस तिब्बती नदी के शेष भाग अपने प्राचीन मार्ग का अनुसरण करते हुए ब्रह्मपुत्र नदी के रूप में बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गर्ने लगी. भारत का संवैधानिक विकास के प्रमुख चरण
प्रायद्वीपीय नदी तंत्र–
भारत का पश्चिमी घाट प्रायद्वीप भाग में जल विभाजक का कार्य करता हैं प्रायद्वीपीय भाग की नदियाँ पश्चिम से पूर्व की तरफ प्रवाहित होती हैं. प्रायद्वीप भाग के दो प्रमुख अपवाद हैं – नर्मदा नदी और तापी नदी जो पूर्व से पश्चिम में भ्रंश घाटियों से होकर बहती हैं. भ्रंश घाटी नदियों द्वारा निर्मित न होकर प्राकृतिक हैं. परन्तु पश्चिमी घाट को मुख्य जल विभाजक माना जाता है.
प्रायद्वीपीय भाग के पश्चिम में भू-भाग थोडा धसा हुआ होने के कारण जलमग्न हो गया है तथा मूल जल विभाजक के दोनों तरफ नदियों के सममित विन्यास को अव्यवस्थित कर दिया. इसके अतिरिक्त दूसरा विरूपण हिमालय के भूगर्भिक हलचल के कारण प्रायद्वीपीय क्षेत्र में अवतल बन गया. जिसके फलस्वरूप द्रोणी-भ्रंश हुआ. नर्मदा और तापी नदियाँ इसी भ्रंश से होकर प्रवाहित होती हैं. उत्तर कालीन मुगल साम्राज्य का उत्थान और पतन
प्रायद्वीपीय नदियाँ अनुवर्ती नदी अपवाह के सबसे अच्छा उदाहरण हैं.
भारत के प्रमुख अपवाह तंत्र-
दुनिया के किसी भी अपवाह तंत्र उस भू-भाग के उच्चावच और ढालों पर निर्भर करता हैं. भारत जैसे विशाल उपमहाद्वीप के उत्तर दिशा में हिमालय और दक्षिण में प्रायद्वीप का पठार है in दोनों के मध्य विशाल मैदान हैं. इन्हीं भौगोलिक स्थितियों के आधार पर भारत के अपवाह-तंत्र को को मुख्यरूप से दो भागों में बाँटा गया हैं-
- हिमालय की नदियों का अपवाह तंत्र
- प्रायद्वीप की नदियों का अपवाह तंत्र
हिमालय पर्वत से विशाल नदियाँ निकलती हैं इन नदियों से निम्न तीन प्रकार के अपवाह तंत्र का निर्माण होता हैं-
सिन्धु अपवाह-भारत के उत्तर-पश्चिम में सिन्धु नदी और उसकी सहायक नदियाँ एक वस्तृत क्षेत्र से प्रवाहित होती हैं व्यास, सतलज, झेलम,रावी, चिनाब जैसी नदियां सिन्धु की सहायक हैं इन सभी नदियों में से झेलम पीरपंजाल चोटी से निकलती है तथा बाकि सभी हिमालय से ही नकलती हैं
यहाँ हम एक-एक करके इन पांचों नदियों की चर्चा करेंगे-
- सिन्धु नदी-यह नदी तिब्बत में स्थित मानसरोवर के पास स्थित चेमायंगडुंग नामक ग्लेशियर से निकलती है इस नदी की लम्बाई 2880 किलोमीटर है तथा इसका प्रवाह क्षेत्र 11.70 लाख वर्ग किलोमीटर हैं, भारत में इसका प्रवाह क्षेत्र लगभग 3.21 लाख वर्ग किमी. है.
- सिन्धु नदी में बाईं तरफ से पांच नदियाँ मिलती पञ्चनद क्षेत्र बनाती हैं. या पांच नदिया निम्लिखित हैं- सतलज, रावी, व्यास, चिनाब और झेलम.
- मिथनकोट में या पांचों नदियाँ सिन्धु नदी में मिल जाती हैं इसके अलावा जास्कर, स्यांग, गिलगिट, शिगार ये बबाई और से सिन्धु नदी में मिलती हैं. आगे चलकर दायी ओर से काबुल, गोमल, कुर्रम नदियाँ मिलती हैं. सिन्धु नदी अरब सागर में बड़ा सा डेल्टा बनाती हैं .
झेलम नदी– झेलम नदी कश्मीर घाटी के दक्षिण-पूर्व में लगभग 4900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बेरीनाग झील के निकट एक झरने से निकलती हुई कश्मीर की ही वुलर झील से होते हुए पडौसी देश पाकिस्तान की सीमा के निकट एक विशाल खड्डा बनाती हुई ट्रम्मुनामक स्थान के पास चिनाब नदी में मिल जाती हैं. झेलम नदी भारत और पाकिस्तान के बीच 170 किलोमीटर सीमा बनाती है.
रावी नदी– हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित रोहतांग दर्रे से रावी नदी का उदगम होता हैं . रोहतांग दर्रे के पास स्थित व्यासकुंड से व्यास नदी का उद्गम होता हैं. इस घाटी को ही कुल्लू की घाटी के नाम से जाना जाता हैं. पाकिस्तान में सराय सिन्धु नामक स्थान पर चिनाव नदी में रावी नदी मिल जाती है.
चिनाब नदी– हिमाचल प्रदेश के लाहौल जिले में बारालाचा दर्रे के दोनों तरफ से चिनाब नदी का उदगम होता है . चिनाब नदी सिन्धु नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी भी हैं. लाहौल जिले के बारालाचा दर्रे से चंद्रभागा और अस्किनी नदी का भी उदगम होता है.
व्यास नदी– हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित रोहतांग दर्रे के पास स्थित व्यासकुंड से व्यास नदी का उद्गम होता हैं. और व्यास नदी कोटी और लारजी नामक स्थान के निकट महाखड्ड का निर्माण करती हुई हरिके नामक स्थान के पास सतलज नदी में विलीन हो जाती है.
सतलज नदी– तिब्बत में 4630 मीटर की ऊंचाई पर स्थित राक्षस ताल(राकस ताल या रावण हृद) से सतलज नदी की उत्पत्ति होती होती हैं और सतलज नदी पूर्व की तरफ बहती हुई शिपकला दर्रे से निकल कर हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती हैं भारत का प्रसिद्ध भाखड़ा नांगल बांध सतलज नदी पर ही बना हुआ हैं. स्पीत नदी इसकी प्रमुख सहायक नदी हैं.
गंगा नदी का अपवाह –गंगा नदी का अपवाह देश के लगभग ¼ क्षेत्र में विस्तृत है. गंगा नदी उपजाऊ मिटटी के मैदान का निर्माण करती है. इस मैदान में सबसे ज्यादा खाद्यान्न का उत्पादन होता है. तथा इस क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व भी सबसे ज्यादा पाया जाता है. गंगा नदी के अपवाह में स्वयं गंगा और उसकी अनेक सहायक नदियाँ भी सम्मिलित हैं.
गंगा नदी– गंगा नदी का उद्गम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले से होता है गंगा उत्तरकाशी में लगभग 7000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित गोमुख के निकट गंगोत्री नमक हिमनद से निकलती है. उत्तरकाशी में गंगा को भागीरथी कहते हैं इसके बाद ये देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिल जाती है तो in दोनों के संयुक्त रूप को गंगा नदी कहते हैं अलकनंदा की दो धाराएँ धौलीगंगा और विष्णुगंगा, विष्णुप्रयाग के पास मिल जाती हैं इसके बाद इसमें कर्णप्रयाग के पास पिंडर नदी और रुद्रप्रयाग के पास मंदाकिनी नदी मिल जाती है. प्राचीन भारत का इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी
हरिद्वार के निकट से गंगा नदी मैदान में प्रवेश करती है उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद(प्रयागराज) तक गंगा की दिशा दक्षिण और दक्षिण-पूर्व होती हैं. इलाहाबाद से आगे गंगा की दिशा फरक्का तक पूर्व की तरफ है. फरक्का से आगे बढ़ने पर गंगा नदी की दिशा दक्षिण-पूर्व हो जाती है और गंगा बांग्लादेश में प्रवेश करती हैं बांग्लादेश में गंगा नदी को पद्मा के नाम से जाना जाता है.
गंगा नदी के उत्तर दिशा में हिमालय में तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार से कई छोटी-बढ़ी सहायक नदियाँ आके मिल जाती हैं. गंगा के बाँए तट से मिलने वाली सहायक नदियाँ रामगंगा, टोंस,घाघरा, गोमती,बागमती गंडक, तथा कोसी आदि आदि हैं. और दाहिने तट से मिलने वाली सहायक नदियाँ यमुना पुनपुन, सोन और रूपनारायण आदि हैं.